Madhu varma

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लेखनी कविता - कछुआ - बालस्वरूप राही

कछुआ / बालस्वरूप राही


हम बच्चे डरते कछुए से,
पर हम से दर्ता कछुआ।
छूए अगर कोई तो झटपट
मुंह अंदर करता कछुआ।

ढीलमढील अंग हैं सारे,
पत्थर-सी हैं पीठ मगर!
इतना सुस्त, चले दो मोटर
दिन-भर चलता रहे अगर!

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